30. श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप_प्रश्नोत्तरी श्रृंखला_7.08–7.14

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Religious Studies

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1.

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कृपया यहाँ पर अपना नाम लिखें ।

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2.

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30 sec • 1 pt

कृपया यहाँ पर अपनी आयु लिखें ।

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3.

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1 min • 1 pt

कृपया यहाँ पर अपना मोबाईल नं0 लिखें ।

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4.

OPEN ENDED QUESTION

2 mins • 1 pt

कृपया यहाँ पर अपना पता लिखें ।

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5.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

ब्रह्मकुमारी, राधास्वामी, निरंकारी जैसी धार्मिक संस्थाएँ केवल परमेश्वर की प्रारंभिक अनुभूति अर्थात् निर्विशेष ब्रह्म का ही पूर्ण परब्रह्म के रूप में प्रचार करते हैं । ऐसा क्यों ?

क्योंकि ऐसी संस्थाएँ केवल पालनकर्ता, संचालनकर्ता एवं विनाशकर्ता परा व अपरा शक्तियों की निराकार अनुभूति को ही परब्रह्म स्वरूप मानती हैं ।

वह इन शक्तियों के स्रोत एवं धारक को ढूंढने का प्रयास नहीं करती हैं ।

ऐसी संस्थाएँ भगवान् के मनुष्य सदृश रूप को स्वीकार नहीं कर पाती हैं

क्योंकि वह भगवान् के किसी अकल्पनीय स्वरूप की अपेक्षा रखती हैं ।

ऐसी संस्थाएँ वैदिक शास्त्रों पर यथावत् विश्वास नहीं करती हैं वह वैदिक शास्त्रों को अपने मनमाने ढंग से ग्रहण करती हैं और ब्रह्मावस्था को ही पूर्ण परब्रह्म मानकर उसका प्रचार करती हैं ।

यह सभी तर्क सत्य हैं।

6.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

2 mins • 1 pt

श्लोक संख्या 7.8 के माध्यम से भगवान् श्रीकृष्ण ने क्या स्पष्ट किया है ?

परा तथा अपरा शक्तियों के माध्यम से अपनी सर्वव्यापकता ।

परा तथा अपरा शक्तियों के माध्यम से अपनी सर्वज्ञता ।

परा तथा अपरा शक्तियों के माध्यम से अपना परिग्रहभाव ।

परा तथा अपरा शक्तियों के माध्यम से अपना सर्वस्व ।

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

2 mins • 1 pt

श्लोक संख्या 7.8 के आधार पर निम्न में से सही कथन को चुनें ।

जल का स्वाद भगवान् की शक्ति है, परंतु जल नहीं ।

सूर्य चंद्रमा का प्रकाश भगवान् की शक्ति है, परंतु सूर्य चंद्रमा नहीं ।

वैदिक मंत्रों में ओंकार भगवान् की शक्ति है, परंतु वैदिक मंत्र नहीं ।

यह सभी कथन सही नहीं है क्योंकि श्लोक संख्या 7.4 के माध्यम से भगवान् श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि सभी भौतिक पदार्थ भगवान् की अपरा शक्ति हैं ।

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