16. श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप_प्रश्नोत्तरी श्रृंखला_3.42–4.11

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श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक संख्या 4.7 में श्रील प्रभुपाद जी के द्वारा सृजामि शब्द की व्याख्या करना क्यों महत्वपूर्ण है ?

यह स्पष्ट करने के लिए कि श्रीकृष्ण का शरीर अपनी माता के गर्भ से भौतिक पञ्चमहाभूतों द्वारा निर्मित होकर प्रकट होता है ।

यह स्पष्ट करने के लिए कि श्रीकृष्ण हमारी तरह साधारण मनुष्य नहीं अपितु अलौकिक शक्ति के दिव्य अवतार हैं ।

यह स्पष्ट करने के लिए कि श्रीकृष्ण के शरीर की सृष्टि भौतिक पञ्चमहाभूतों से नहीं होती, अपितु वह अपने दिव्य एवं शाश्वत रूप में प्रकट होते हैं ।

यह स्पष्ट करने के लिए कि श्रीकृष्ण के शरीर की सृष्टि दिव्य एवं आध्यात्मिक तत्वों द्वारा होती है, न कि भौतिक पंचमहाभूतों के द्वारा ।

6.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

क्या भगवान् श्रीकृष्ण का ब्रह्मा जी के प्रत्येक दिन के सातवें मनवंतर के 28वें चतुर्युग के द्वापर के अंत में प्रकट होना पूर्व निर्धारित है ?

हाँ, परन्तु भगवान् इस नियम के पालन के लिए बाध्य नहीं हैं क्योंकि श्लोक संख्या 4.7 में भगवान् यह स्पष्ट करते हैं कि जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है तथा अधर्म की प्रधानता होती है, तब-तब वह अवतार लेते हैं ।

नहीं, क्योंकि भगवान् ऐसे किसी नियम के पालन के लिए बाध्य नहीं हैं क्योंकि श्लोक संख्या 4.7 में भगवान् यह स्पष्ट करते हैं कि जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है तथा अधर्म की प्रधानता होती है, तब-तब वह अवतार लेते हैं ।

हाँ, परन्तु भगवान् समयानुसार नियमों में परिवर्तन करते रहते हैं अतः श्लोक संख्या 4.7 में भगवान् इसकी पुष्टि करते हैं कि जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है तथा अधर्म की प्रधानता होती है, तब-तब वह अवतार लेते हैं ।

नहीं, क्योंकि भगवान् समयानुसार नियमों में परिवर्तन करते रहते हैं अतः श्लोक संख्या 4.7 में भगवान् इसकी पुष्टि करते हैं कि जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है तथा अधर्म की प्रधानता होती है, तब-तब वह अवतार लेते हैं ।

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

2 mins • 1 pt

कृपया “धर्मं तु साक्षाद्भगवत्प्राणीतम्” का अर्थ समझाएँ ।

यह कि धर्म के नियम भगवान् के प्रत्यक्ष आदेश हैं ।

यह कि भगवान् का धर्म है जीवों को आदेश देना ।

यह कि धर्म भी साक्षात् भगवान् का सेवक है ।

यह कि धर्म भी साक्षात् भगवान् को प्रणिपात करता है ।

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