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18. श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप_प्रश्नोत्तरी श्रृंखला_4.21–4.29

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Abhay Ram Das
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श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक संख्या 4.21 में वर्णित "ऐसा ज्ञानी पुरुष पूर्ण रूप से संयमित मन तथा बुद्धि से कार्य करता है ।" ऐसे पुरुष का इनमें से कौन सा ज्ञान संदर्भित नहीं है ?
जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है ।
जिस व्यक्ति का प्रत्येक प्रयास (उद्यम) इन्द्रियतृप्ति की कामना से रहित होता है ।
अपने कर्म फलों की सारी आसक्ति को त्याग कर सदैव संतुष्ट रहता है ।
जो सभी प्रकार के कार्य में व्यस्त रह कर, केवल सकाम कर्म करता है ।
6.
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श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक संख्या 4.21 में भगवान् श्री कृष्ण ने कृष्णभावनाभावित व्यक्ति के जो लक्षण प्रस्तुत किए हैं । उनमें निम्न में से कौन सा लक्षण नहीं है ?
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति पूर्ण रूप से संयमित मन तथा बुद्धि से कार्य करता है ।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति अपनी संपत्ति के सारे स्वामित्व को त्याग देता है ।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति केवल शरीर निर्वाह के लिए कर्म करता है ।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति पाप रूपी दुर्जेय फलों से सदैव प्रभावित होता है ।
7.
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कृष्णभावनाभावित व्यक्ति समस्त प्रकार के कर्मों को करते हुए भी, सदैव कर्मफलों से मुक्त रहता है । निम्न में से इसका कौन सा कारण नहीं है ? चयन करें।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति को यह ज्ञान होना कि कृष्ण के भिन्नांश के रूप में उसके द्वारा संपन्न कोई भी कर्म उसका न होकर उसके माध्यम से परमेश्वर द्वारा संपन्न हुआ होता है ।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कर्म के द्वारा अपने शरीर का निर्वाह करता है, ताकि भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति करने के लिए उसका शरीर उचित स्थिति में बना रहे ।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति सदैव भगवदिच्छा का अनुगामी होता है, क्योंकि उसकी निजी इन्द्रियतृप्ति की कोई कामना नहीं होती है । अपितु वह अपने प्रयासों के समस्त फलों के प्रति सदैव निश्चेष्ट रहता है ।
कृष्णभावनाभावित व्यक्ति अपने पद-प्रतिष्ठा हेतु भौतिक उपाधियों तथा वस्तुओं का संग्रह करता है । ताकि उसके धार्मिक वर्चस्व का क्रमिक विकास हो सके ।
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