Bhagavad Gita As It Is DAY-08 (2.25-34)

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

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पिता के स्वरुप/अस्तित्व को जानने का साधन/एकमात्र प्रमाण क्या है? (2.25)

बौद्धिक परीक्षण

डी एन ए टेस्ट

पड़ोसी

माता

2.

MULTIPLE SELECT QUESTION

3 mins • 1 pt

क्या आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती/सकती है? (2.25)

नहीं, शाश्वत रूप से अविकारी रहते हुए आत्मा अनन्त परमात्मा की तुलने में अणु-रूप है

हाँ, जैसे नदी समुद्र में, घड़े की वायु आकाश में मिल जाती है

नहीं, क्या पुत्र कभी माता में विलीन हो सकता/ जाता है?

3.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

आत्मा के गुणों : अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय को बार-बार दोहराया क्यों जा रहा है? (2.25)

शायद भगवान् श्रीकृष्ण या व्यासदेव जी भूल गए हैं

दुहराना उस तथ्य को बिना किसी त्रुटि के समझने के लिए आवश्यक है

4.

MULTIPLE SELECT QUESTION

3 mins • 1 pt

ऐसे कौन से दार्शनिक हैं जो नहीं मानते कि शरीर के परे भी आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है और जीवन के लक्षणों को भौतिक संयोग की घटना मानते हैं? (2.26)

लोकायतिक तथा वैभाषिक नाम से जाने जाने वाले पुरातन दार्शनिक

आधुनिक भौतिक विज्ञानी तथा भौतिकवादी दार्शनिक

नृतत्त्व विज्ञान, अनेक आधुनिक छद्म धर्म व शून्यवादी अभक्त बौद्ध अनुयायी

5.

MULTIPLE SELECT QUESTION

3 mins • 1 pt

जो भौतिकतावादी आत्मा में विश्वास ही नहीं करते उनके लिए क्यों शोक करने का कारण नहीं है? (2.26)

थोड़े से रसायनों की क्षति के लिए शोक करके कोई कर्तव्यपालन छोड़ता है क्या?

यदि पदार्थ से प्रत्येक क्षण असंख्य जीव उत्पन्न होते है और नष्ट होते रहते हैं, तो शोक कैसा?

यदि आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता तो अर्जुन को स्वजनों के वध करने के पापफलों से डरने का कोई कारण ही नहीं, नहीं?

6.

MULTIPLE SELECT QUESTION

3 mins • 1 pt

Media Image

कृष्ण ने अर्जुन को व्यंगपूर्वक महाबाहु कह कर क्यों सम्बोधित किया? (2.26)

क्योंकि अर्जुन को वैदिक ज्ञान के प्रतिकूल, आत्मा को नकारने वाला, वैभाषिक ज्ञान स्वीकार्य नहीं था

क्षत्रिय होने के नाते वैदिक सिद्धान्तों का पालन करते रहना ही उसके लिए शोभनीय था

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

3 mins • 1 pt

कौन सा श्लोक बताता है कि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और उसके बाद पुनर्जन्म निश्चित है?

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |

तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || 2.27 ||

आश्र्चर्यवत्पश्यति कश्र्चिदेनमाश्र्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः |

आश्र्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्र्चित् || 2.29 ||

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