“अहले दुनिया का रिवाज़ है की अपनी हैसियत के मुताबिक़ अपना जन्म दिन मानते हैं। गरीब चने तकसीम करता है , अमीर मिठाई बांटता है राजा महाराजा हीरे जवाहिरात लुटाते हैं। चुनांन्चे राधास्वामी सत्संग भी अपनी हैसियत के मुताबिक अपना योमे विलादत ( जन्म दिवस ) मनाता है।“
When were these lines first published in Prem Pracharak?