Bhagavad Gita As It Is DAY-27 (6.29-38)

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KG - Professional Development

26 Qs

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26 questions

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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आत्मा तथा परमात्मा में क्या अन्तर है? (6.29)

परमात्मा हर प्राणी के हृदय में एकसाथ स्थित (सर्वव्यापी) हैं

परमात्मा भौतिक रूप से प्रभावित हो जाते हैं पर जीवात्मा नहीं होता

जीवात्मा भी एक-एक हृदय में विद्यमान है व एकसाथ समस्त हृदयों में सर्वव्यापी है

2.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

भगवान् की दो मुख्य शक्तियों – परा तथा अपरा - से जीव किस प्रकार सम्बंधित है? (6.29)

जीव अपराशक्ति का अंश है

जीव पराशक्ति से बद्ध है

अपराशक्ति में वह भौतिक इन्द्रियों का दास रहता है

पराशक्ति में वह साक्षात् परमेश्वर का दास रहता है

प्रत्येक अवस्था में जीव ईश्वर का दास है

3.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

आत्मसाक्षात्कार से ऊपर कृष्णभावनामृत की अवस्था में भक्त का कृष्ण से एकरूप हो जाने का क्या अर्थ है? (6.30)

उसके लिए कृष्ण ही सब कुछ हो जाते हैं

भक्त प्रेममय कृष्ण से पूरित हो उठता है

भगवान् तथा भक्त के बीच अन्तरंग सम्बन्ध हो जाता है

भगवान् भक्त की दृष्टि से ओझल नहीं होते हैं

कृष्ण में तादात्म्य होना

4.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

भक्त अपने हृदय में स्थित भगवान् को श्यामसुंदर रूप में किस प्रकार देख पाते हैं? (6.30)

प्रेमरूपी अंजन लगे नेत्रों से

कुण्डलिनी जागरण द्वारा

निराकार ब्रह्म का तादात्म्य करके

अष्टांग योग का दृढ़ता से पालन करके

5.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

योगी अपने अन्तःकरण में चतुर्भुज विष्णु का दर्शन कृष्ण के पूर्णरूप में करता है जो हाथ में ______ धारण किये रहते हैं | (6.31)

शंख

चक्र

गदा

कमलपुष्प

धनुष

6.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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इनमें से क्या सही नहीं है? (6.31)

असंख्य जीवों के हृदयों में स्थित असंख्य परमात्माओं में थोड़ा-थोड़ा अन्तर है जैसे एक भक्त और योगी के मध्य है

कृष्णभावनामृत योगी सदैव कृष्ण में ही स्थित रहता है भले ही भौतिक जगत् में वह विभिन्न कार्यों में व्यस्त क्यों न हो

भगवान् एक होते हुए भी अपनी अचिन्त्य शक्ति से सर्वत्र रहते हैं, जैसे सूर्य एक ही समय अनेक स्थानों में दिखता है

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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जीव के दुख का कारण क्या है? (6.32)

सदा कृष्ण का स्मरण करना

ईश्र्वर से अपने सम्बन्ध का विस्मरण होना

प्रत्येक व्यक्ति को कृष्णभावनाभावित बनाने का प्रयास करना

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