Bhagavad Gita As It Is DAY-31 (7.22-30, 8.1)

Bhagavad Gita As It Is DAY-31 (7.22-30, 8.1)

KG - Professional Development

32 Qs

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Quiz

Life Skills, Philosophy, Special Education

KG - Professional Development

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Keśava Kṛṣṇa Dāsa

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32 questions

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

किन शब्दों से भगवान् बताते हैं कि सभी लाभ उन्हीं द्वारा प्रदान किये जाते हैं? (7.22)

स तया श्रद्धया युक्तस्

तस्याराधनमीहते

लभते च तत: कामान्

मयैव विहितान्हि तान्

2.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

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परमेश्वर की भक्ति तथा देवताओं की पूजा समान स्तर पर कैसे नहीं होती? (7.22)

भौतिक इच्छाओं से पगलाया जीव देवताओं के पास जाता है

भगवान् जीव की अनुचित कामना को पूरा नहीं करते

देवताओं की पूजा आध्यात्मिक है

परमेश्वर की भक्ति नितान्त भौतिक है

3.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

देवताओं की पूजा करने वालों को अल्पमेधसाम् - अल्प बुद्धि वाले, अल्पज्ञ क्यों कहा गया है? (7.23)

उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित तथा क्षणिक होते हैं

देवताओं से प्राप्त वर शाश्वत होते हैं क्योंकि सारे देवता शाश्वत हैं

देवताओं के उपासक भी भगवान् के परमधाम को जाते हैं

4.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

यदि विभिन्न देवता परमेश्वर के शरीर के विभिन्न अंग हैं, तो उन सबकी पूजा करने से एक ही जैसा फल क्यों नहीं मिलता? (7.23)

यह जानना चाहिए कि शरीर के किस अंग को भोजन दिया जाय, क्या कोई कानों या आँखों से शरीर को भोजन पहुँचा सकता है?

भगवान् के विराट शरीर के विभिन्न अंगस्वरुप देवताओं को पृथक ईश्वर और परमेश्वर का प्रतियोगी मानना अज्ञानता है

5.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

कुछ भाष्यकार कहते हैं कि देवता की पूजा करने वाला व्यक्ति परमेश्वर के पास पहुँच सकता है, भगवान् इसका किन शब्दों में खंडन करते हैं? (7.23)

अन्तवत्तु फलं तेषां

तद्भ‍वत्यल्पमेधसाम्

देवान्देवयजो यान्ति

मद्भ‍क्ता यान्ति मामपि

6.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

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भगवान् ने बुद्धिहीन मनुष्य (अबुद्धयः) के क्या लक्षण बताये हैं? (7.24)

जो अपने अल्पज्ञान के कारण भगवान् की अविनाशी तथा सर्वोच्च प्रकृति को नहीं जान पाते

जो सोचते हैं कि भगवान् कृष्ण पहले निराकार थे और अब उन्होंने इस स्वरूप को धारण किया है

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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श्रीमद्भागवत के अनुसार परम सत्य की अनुभूति कहाँ से प्रारम्भ होती है? (7.24)

निर्विशेष ब्रह्म

अन्तर्यामी परमात्मा

परमपुरुष भगवान् श्रीकृष्ण

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