जांच पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:-
विज्ञान शिक्षण के अक्षरों में कल्पना की थी कि शिक्षा में इसकी शुरुआत पारंपरिक ता चिंता और पिछड़ेपन को दूर करेगी। यह सोच पुराने समय से चली आ रही है-'तथ्य पचोर पाठ्यचर्या'जिसके अंतर्गत आलोचना चुनौती सृजनात्मकता वह विवेचनात्मक ता का अभाव था, आज के कारण पैदा हो रही थी। मानवता वासियों ने सोचा था कि वैज्ञानिक पद्धति मध्यकालीन मतवाद के अंधविश्वासों को जड़ से मिटा देगी। केंद्र हमारे शिक्षकों ने रासायनिक प्रतिक्रियाओं की समझ को भी प्रेमचंद की कहानियों की तरह केवल पड़ा वह हटाकर उन्हें नीरज बना दिया/
शिक्षा में विज्ञान शिक्षण सम्मिलित करने के लिए यह तर्क दिया गया था कि इससे बच्चे विज्ञान की खोजों से परिचित हो सकेंगे तथा अपने वास्तविक जीवन में घट रही घटनाओं के बारे में कुछ सीखेंगे। वह वैज्ञानिक विधि का अध्ययन कर तार्किक रूप से कैसे सूचना है कि कौशल में पारंगत होंगे। इन उद्देश्यों में से केवल पहले ही में एक सीमित सफलता मिली है। दूसरे व तीसरे में व्यवहारिक रूप से बच्चे कुछ भी नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। अधिकतर बच्चों ने भौतिकी और रसायन विज्ञान के तथ्यों के बारे में कुछ जानने की उम्मीद की जा सकती है लेकिन वह शायद ही जानते हो कि उनका कंप्यूटर अथवा कार का इंजन कैसे कार्य करते हैं अथवा क्यों उनकी माताजी सब्जी पकाने के लिए उसे छोटे टुकड़ों में काट दी है जबकि वैज्ञानिक पद्धति में रुचि रखने वाले किसी भी उज्जवल लड़के को यह बातें सहज रूप से ही ज्ञात हो जाती हैं।
वैज्ञानिक पद्धति की शिक्षा अधिकांश विद्यालयों में भली प्रकार से नहीं दी जा रही है। दरअसल,शिक्षकों ने अपनी सुविधा और परीक्षा केंद्र सोच के कारण यह सुनिश्चित कर लिया है कि छात्र वैज्ञानिक पद्धति न सीकर ठीक इसका उल्टा सीखे अर्थात वह जो बताए उस पर आंख मूंदकर विश्वास करें और पूछे जाने पर उसे जस का तस परीक्षा में लिख दें। वैज्ञानिक पद्धति को आत्मसात करने के लिए लंबे व्यक्तिगत अनुभव तथा परिश्रम व धैर्य का आधारित वैज्ञानिक मूल्यों की आवश्यकता होती है और जब तक इसे संभव बनाने के लिए शैक्षिक या सामाजिक प्रणालियों को बदल नहीं दिया जाता है अल्पविराम वैज्ञानिक तकनीकों में सक्षम केवल कुछ बच्चे ही सामने आएंगे तथा इन तकनीकों को आगे विकसित करने वालों की संख्या इसका भी अंश मात्र ही होगी।
लेखक का तात्पर्य है कि शिक्षकों ने?