Explanation
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई वस्तु उत्पादन, व्यापार तथा सीमा शुल्क की प्रतिबंधकारी नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप और आकार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जिसके कारण भारत कच्चे उत्पाद जैसे रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया और यह सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्रों जैसी अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं और इंग्लैंड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों आदि का आयातक भी बन गया।
इस काल में भारतीय आयत-निर्यात में निर्यात का आकर आयत के आकार से बड़ा बना रहा अर्थात् निर्यात अधिशेष की स्थिति बनी रही, परंतु इस अधिशेष से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी हानि हुई। इससे देश में सोने और चांदी के प्रवाह पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। असल में इसका प्रयोग तो अंग्रेज़ों की भारत पर शासन करने के लिये गाढ़ी गई व्यवस्था का खर्च उठाने में ही हो जाता था।
अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि विदेशी व्यापार तो केवल इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति को पोषित कर रहा था।