Explanation
व्याख्याः
उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं। फसलों की सुरक्षा के लिये प्रयोग किये जाने वाले पीड़कनाशी तथा अपतृणनाशी जल में घुलकर जलाशयों में पहुँच जाते हैं। ये भूमि में रिसकर भी भौम-जल को प्रदूषित करते हैं। फसलों में प्रयुक्त उर्वरकों में उपस्थित नाइट्रेट एवं फास्फेट जैसे रसायन की मात्रा जलाशयों में अधिक होने से उसमें पोषकों की मात्रा बढ़ जाती है। इस कारण जलाशयों में बहुत से शैवाल उग जाते हैं।
जब शैवाल मरते हैं तो जीवाणु जैसे घटकों के लिये भोजन का कार्य करते हैं। ये घटक अत्यधिक ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। इससे जल में ऑक्सीजन के स्तर में कमी हो जाती है, जिससे जलीय जीव मर जाते हैं। जल की यह अवस्था हाइपॉक्सिया (Hypoxia) तथा यह पूरी प्रक्रिया सुपोषण (Eutrophication) कहलाती है।
विद्युत संयंत्रों तथा उद्योगों से आने वाला गर्म जल भी एक प्रदूषक होता है। यह जलाशयों के ताप में वृद्धि कर देता है, जिससे उसमें रहने वाले पेड़-पौधे व जीव जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कारखानों से निकलने वाले अशुद्ध जल से मृदा भी प्रभावित होती है, जिसके कारण उसकी अम्लीयता तथा कृमियों की वृद्धि में भी परिवर्तन हो जाता है।