Bhagavad Gita As It Is DAY-11 (2.55-64)

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KG - Professional Development

15 Qs

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

श्लोक पहचानें - देहधारी जीव इन्द्रियभोग से भले ही निवृत्त हो जाय पर उसमें इन्द्रियभोगों की इच्छा बनी रहती है | लेकिन उत्तम रस के अनुभव होने से ऐसे कार्यों को बन्द करने पर वह भक्ति में स्थिर हो जाता है |

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः |

वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 2.56 ||

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः |

रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते || 2.59 ||

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङगस्तेषूपजायते |

सङगात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || 2.62 ||

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || 2.63 ||

2.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त स्थितप्रज्ञ किसे कहा जाता है? (2.55)

जो मनोधर्म द्वारा कल्पित सारी विषय-वासनाओं में लिप्त रहता है

जो महात्मा अपने आपको परमेश्वर का शाश्वत दास मानकर आत्मतुष्ट रहता है

जो मनुष्य तनिक भी कृष्णभावनाभावित या भगवद्भक्त नहीं होता है

3.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

सामान्य मुनि और स्थिरचित्त मुनि में क्या अंतर है? (2.56)

मुनि का अर्थ है वह जो शुष्क चिन्तन के लिए मन को अनेक प्रकार से उद्वेलित करे, किन्तु किसी तथ्य पर न पहुँच सके

जिसने शुष्कचिन्तन की अवस्था पार कर ली है और इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि भगवान् श्रीकृष्ण या वासुदेव ही सब कुछ हैं वह स्थिरचित्त मुनि कहलाता है

4.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

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कृष्णभावनाभावित व्यक्ति का क्या स्वभाव होता है? (2.56)

तीनों तापों के संघात से तनिक भी विचलित नहीं होता

पूर्व पापों के कारण अपने को अधिक कष्ट के लिए योग्य मानता है

वह राग या विराग से प्रभावित नहीं होता

सारे प्रयास असफल रहने पर भी वह क्रुद्ध नहीं होता

सुखद स्थिति में भगवान् की सेवा और अच्छी तरह से करने की सोचता है

5.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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इन्द्रियों को इन्द्रियविषयों से खीँच लेने के लिए किसका उदाहरण दिया गया है? (2.58)

सर्प

कछुआ

खरगोश

कबूतर

6.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

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कृष्णभावनाभावित व्यक्ति इन्द्रियों की मांगों को कैसे देखता है? (2.58)

इन्द्रियों की तुलना विषैले सर्पों से की गई है

वे स्वतंत्रतापूर्वक, बिना नियन्त्रण के कर्म करना चाहती हैं

इन्द्रियभोग पर संयम नहीं बरतता है

केवल भगवान् की विशिष्ट सेवाओं के लिए उपयोग करता है

भक्त को एक सपेरे की भाँति अत्यन्त प्रबल होना चाहिए

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

इन्द्रियभोग से विरत/अरुचि होने की सबसे प्रभावी विधि क्या है? (2.59)

विधि-विधानों द्वारा इन्द्रियभोग को संयमित करने की विधि

इन्द्रियसंयमन के लिए अष्टांग-योग जैसी विधि

कृष्णभावनामृत में रूचि जागृत होने से उत्तम रस का अनुभव

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