Bhagavad Gita As It Is DAY-42 (10.40-42, 11.1-7)

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KG - Professional Development

17 Qs

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Bhagavad Gita As It Is DAY-42 (10.40-42, 11.1-7)

Bhagavad Gita As It Is DAY-42 (10.40-42, 11.1-7)

Assessment

Quiz

Life Skills, Philosophy, Special Education

KG - Professional Development

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17 questions

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1.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

परम भगवान् श्रीकृष्ण की कितनी शक्तियां तथा विभूतियाँ हैं? (10.40)

असीमित, सबका वर्णन कर पाना संभव नहीं है

सीमित, उन सबका वर्णन परंतप अर्जुन को किया जा चुका है

2.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

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इस संसार की चकाचौंध का भगवान् श्रीकृष्ण से क्या सम्बन्ध है? (10.41)

कोई सम्बन्ध नहीं है, सब माया है

कृष्ण के एक स्फुलिंग मात्र से उद्भूत विभूति हैं

3.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

Media Image

किस प्रकार कृष्ण का प्रतिनिधित्व सारे भौतिक जगत में है? (10.42)

परमात्मा के रूप में ब्रह्माण्ड की समस्त वस्तुओं में प्रवेश कर जाने के कारण

प्रत्येक स्थान/वस्तु में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के कारण

क्योंकि कृष्ण निराकार हैं अतः वायु की तरह सर्वत्र प्रवेश कर सकते हैं और उपस्थित हैं

4.

MULTIPLE SELECT QUESTION

5 mins • 1 pt

ऐसी धार्मिक संस्था (मिशन), जो यह निरन्तर प्रचार करती है कि किसी भी देवता की पूजा करने से भगवान् या परं लक्ष्य की प्राप्ति होगी, उनका यह प्रचार क्यों गलत है? (10.42)

ब्रह्मा तथा शिव जैसे महानतम देवता भी कृष्ण की विभूति के केवल अंशमात्र हैं

कृष्ण असमोर्ध्व हैं जिसका अर्थ है कि न तो कोई उनसे श्रेष्ठ है, न उनके तुल्य

(पद्मपुराण) जो लोग भगवान् कृष्ण को देवताओं की कोटि में, चाहे ब्रह्मा या शिव ही क्यों न हो, मानते हैं वे पाखण्डी हैं

5.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

Media Image

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप के ग्यारहवें अध्याय का क्या शीर्षक है?

परम गुह्य ज्ञान

श्रीभगवान् का ऐश्वर्य

विराट रूप

भक्तियोग

6.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

किन शब्दों से अर्जुन स्वीकार करता है कि कृष्ण अपनी कृपा से उसके लाभ के लिए ही सब कुछ बता रहे हैं? (11.1)

मदनुग्रहाय परमं

गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन

मोहोऽयं विगतो मम

7.

MULTIPLE CHOICE QUESTION

5 mins • 1 pt

किन शब्दों से अर्जुन ने स्वीकार किया कि उसका मोह दूर हो गया है? (11.1)

मदनुग्रहाय परमं

गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन

मोहोऽयं विगतो मम

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